ब्यूरो संवाददाता
इटावा: प्रमुख मेन्सवियर ब्रांड टर्टल लिमिटेड (लि.) ने टर्टल सर्वाइवल एलायंस (टीएसए) के साथ साझेदारी में विश्व कछुआ दिवस मनाते हुए गंभीर रूप से प्रलुप्त हो रहे रेड क्राउंड रूफड टर्टल (बटागुर कचुगा ) और थ्री इसट्राईपड रूफड टर्टल (तीन-धारियों वाला रूफड कछुआ ) के सैकड़ों हैचलिंग (अंडे से निकले बच्चे) रविवार को चम्बल नदी क्षेत्र में छोड़े। बता दें कि विश्व टर्टल (कछुआ) दिवस पूरे विश्व में 23 मई को मनाया जाता है । इस अवसर पर टर्टल लिमिटेड और टीएसए के बीच एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) भी साइन किया गया। टीएसए एक अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण संगठन है जो साफ़ पानी वाले कछुओं को विलुप्त होने से बचाता है। भारत और दुनिया भर में साफ़ पानी के कछुए की आबादी बहुत ही तेज़ दर से कम हो रही है जिसने कोलकाता स्थित परिधान ब्रांड, टर्टल को इटावा के चंबल में कछुआ संरक्षण परियोजना में भाग लेने और इसे अपने कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व प्रयास के हिस्से के रूप में लेने के लिए प्रेरित किया। टर्टल लिमिटेड की ओर से हेड मार्केटिंग, सुश्री नरिंदर कौर और टीएसए की ओर से, देश में कछुआ संरक्षण के अग्रणी डॉ शैलेंद्र सिंह समझौता ज्ञापन(एमओयू) पर हस्ताक्षर के दौरान उपस्थित थे।
टर्टल लिमिटेड की पूरे भारत में 150 से अधिक एक्सक्लूसिव ब्रांड आउटलेट्स और बड़े पैमाने पर स्टोर्स में मौजूदगी है। टर्टल लिमिटेड के ब्रांड मैनेजर, रूपम देब ,ने दुर्लभ हैचलिंग को नदी में छोड़े जाने के अवसर पर कहा "हम लोगों, पृथ्वी और समाज की स्थिरता के लिए प्रतिबद्ध हैं और इस प्रतिबद्ध ढांचे के एक हिस्से के रूप में टर्टल लिमिटेड ने टीएसए की विशेषज्ञ टीम के साथ साझेदारी की है, ताकि कछुआ संरक्षण और आसपास के वनस्पतियों और जीवों की संरक्षण से संबंधित गतिविधियों और परियोजनाओं में संलग्न हो कर योगदान दिया जा सके। ब्रांड टर्टल लिमिटेड के प्रतिनिधि के रूप में हम इसे समाज और पर्यावरण को वापस देने के लिए इसे अवसर के रूप में देखते हैं।
इस अवसर पर टीएसए के विकास शोधकर्ता डॉ सौरभ दीवान भी उपस्थित थे, जिन्होंने बताया कि,चंबल संरक्षण परियोजना, 2006 में शुरू की गई थी। उत्तर प्रदेश वन विभाग के साथ संयुक्त रूप से प्रमुख परियोजनाओं में से एक है जो ताजे पानी के दो कछुओं की प्रजातियों (जो खतरे में हैं) उनपर केंद्रित है जिनके नाम, रेड क्राउंड रूफड टर्टल और थ्री इसट्राईपड रूफड टर्टल हैं। हर साल इन दो प्रजातियों के तीन सौ घोंसलों की चम्बल के आसपास क्षेत्र में रक्षा की जाती है। टीएसए इंडिया की परियोजना अधिकारी, डॉ. अरुणिमा सिंह ने कहा,इन घोंसलों को मानवयुक्त नदी-किनारे हैचरी में संरक्षित किया जाता है और हैचलिंग को तुरंत उन जन्म स्थलों से छोड़ दिया जाता है जहां इनके घोंसले होते हैं, ताकि शिकारी जानवर इनके अण्डों का कम से कम शिकार कर पाएं। टीएसए इंडिया कार्यक्रम का प्रबंधन भारतीय संरक्षण जीवविज्ञानियों, वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं द्वारा किया जाता है जो कछुओं को बचाने के लिए स्थानीय समाधान तलाशता है।
टीएसए भारत भर में पांच स्थानों - पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश के टेरायी क्षेत्र evam चंबल क्षेत्रों , उत्तर-पूर्व भारत और दक्षिण भारत में में कछुओं का संरक्षण कर रहा है। इस कछुआ पुनर्वास कार्यक्रम के अवसर पर पर्यावरणविद,वन्यजीव विशेषज्ञ व नगर पालिका परिषद के पर्यावरण एवं वन्यजीव के ब्रांड एम्बेसडर डॉ आशीष त्रिपाठी ने कहा कि, ये नन्हें साफ पानी के कछुये नदी के जल में प्राकृतिक रूप से एक जल गिद्ध की तरह ही कार्य करते है जो नदी में मृत पड़े सड़े गले माँस को खाकर नदी के पानी को हमेशा साफ बनाये रखते है। हम सभी को हमेशा ही इन बेहद महत्वपूर्ण वन्यजीवों (जल गिद्धों) की रक्षा हर कीमत पर करनी ही चाहिये। जागरूकता कार्यक्रम में ग्रामीण बच्चों ने कछुआ बचाओ विषय पर लघु नाटिका प्रस्तुत की। कार्यक्रम में वन विभाग के अधिकारी हरी किशोर शुक्ला व अन्य कर्मचारी भी मौजूद रहे।
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