ब्यूरो संवाददाता
इटावा: जिले के वार्षिक उत्सव का स्वरूप ले चुके इटावा महोत्सव का आगाज इस बार देरी से होने की संभावना है। स्थानीय निकाय चुनाव की तैयारी में जुटे प्रशासन के पास फिलहाल महोत्सव के आयोजन के लिए समय नहीं है। लिहाजा चुनाव सम्पन्न होने के बाद ही महोत्सव का आयोजन सम्भव होता दिख रहा है।
पिछले कुछ सालों में नवंबर के अंतिम रविवार से महोत्सव के शुरुआत की परम्परा रहीं है। प्रशासन की ओर से फिलहाल आयोजन को लेकर चुनाव कार्यक्रम घोषित होने का इंतजार किया जा रहा है। अमूमन दीपावली बीतने के बाद दुकानों के आवंटन से लेकर रँगाई पुताई के काम में तेजी आ जाती थी लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ नहीं हो रहा। सन 1888 में इटावा की ऐतिहासिक नुमाइश का जन्म यहां के राजाओं, सेठ और जमीदारों ने मिलकर किया। सैकड़ो वर्ष पुरानी नुमाइश के आयोजन पर पिछली बार कोरोना का साया छाया था। इस बार हालात सामान्य होने पर महोत्सव की तैयारियों में तेजी नहीं आ पा रहीं इसका कारण स्थानीय निकाय चुनाव को बताया जा रहा है।
1893 तक लाला भगवान दास के पक्के तालाब के चारों ओर लगने वाली प्रदर्शनी और मेले का यह स्वरूप 100 वर्षों बाद भी अपनी रवायतों को सहेजे हुए है। यहाँ लगने वाली 1200 से अधिक कच्ची व पक्की दुकानों से हजारों दुकानदारों को आजीविका मिलती है तो वहीं जिले के साथ आसपास के ज़िलों में भी लाखों लोगों को इसका इंतजार है। सन 1910 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन तत्कालीन जिलाधिकारी एचके ग्रेसी आईसीएस ने पूर्णिमा के चंद्रमा की भावनाओं को देखकर इटावा को एक नई क्रांति देने का मन बनाया। जिसे यहां के लोगों ने बड़े हृदय के साथ स्वीकार किया।
वर्तमान प्रदर्शनी स्थल पर सन 1910 में शुरू हुई जनपद प्रदर्शनी आज इटावा महोत्सव के स्वरूप में बदल चुकी है। 112 वर्षों से अधिक का इतिहास सहेजे प्रदर्शनी जिले के अलावा देशभर में महोत्सव में अपनी अलग पहचान रखती है। ऐसे में आयोजन से हजारों लोगों के साथ हजारों दुकानदारों के साथ यहाँ मनोरंजन के लिए आने वाले लाखों लोगों को भी उम्मीद जगी है।
Comments
Post a Comment