लेखक : डा धर्मेंद्र कुमार असिस्टेंट प्रोफेसर
विपक्षी दल मणिपुर चिल्लाएंगे, सत्ता पक्ष मौन होगा और सत्ता पक्ष का हिंदुओं का भूत धारण कर चुके अपनी हिंदू वाली गाथा कहेंगे, विरोध नहीं करेंगे बल्कि आपको नसीहत देंगे कि आपको पश्चिम बंगाल नहीं दिख रहा? बिहार क्यों नहीं दिख रहा? राजस्थान क्यों नहीं दिख रहा? जिसका सीधा सा आशय उच्च वर्ण की वकालत है। कुलदीप सेंगर कांड में सत्तापक्ष तो बचाव कर ही रहा था किंतु भाजपा क्षत्रिय संगठन कुलदीप सेंगर का बचाव अभियान सड़कों पर चला रहा था, मनीषा वाल्मीकि कांड में यही सत्तापक्ष तथा सत्ता समर्पित तथाकथित संगठन मनीषा वाल्मीकि के परिवार को हड़काते हुए देखे गए थे। राजस्थान के जालौर में सवर्ण अध्यापक छैल सिंह द्वारा दलित छात्र द्वारा घड़े से पानी लेने पर पीट पीटकर मरणासन्न कर दिया तब भी अंततः उस बच्चे को अपनी जान गवानी पड़ी। जबकि विपक्षी भाजपा के अंतरंग तथाकथित संगठन बचाव में पंचायतें कर रहे थे।
चिन्मयानंद द्वारा घिनौना कृत्य करने पर आरोपी का पक्ष सत्ता तथा उसके द्वारा पोषित संगठनों ने किया। कानपुर में एक ब्राह्मण जाति का व्यक्ति गाय के साथ मैथुन हरकतें कर रहा था तब इन्हीं भक्त वत्सल शांति दूतों द्वारा यह कहकर बचाव कर लिया गया कि उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। मध्य प्रदेश के सीधी में आदिवासी व्यक्ति पर पेशाब करने वाले पंडित जी का आनन-फानन में दिखावटी घर गिराना, गिरफ्तारी दिखाकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने पैर धो लिए किंतु जातीय सर्वोच्च विद्वानों द्वारा कहीं इसका विरोध नहीं किया गया। जातिवादी मानसिकता के चलते पहलवान बेटियों के द्वारा आरोप लगाते हुए बृजभूषण सिंह के खिलाफ दिल्ली में महीनों धरना देने के बाबजूद ब्रज भूषण का भाजपा समर्थित तथा जातीय सर्वोच्च व्यक्ति बचाव कार्य करते रहे। न्यायपालिका सरकार के मंत्री प्रधानमंत्री पहलवान बेटियों पर न्याय के बदले अत्याचार करते रहे कि धरना समाप्त कर दिया जाए। बृजभूषण के रसूख तथा जाति सर्वोच्चता से संपूर्ण सरकारी तंत्र कायल रहे।
भाजपा आर एस एस तथा जातीय सर्वोच्चता धारण व्यक्ति हमारे देश की साझा संस्कृति को नष्ट करने की फिराक में है, जिसके चलते मणिपुर में हद दर्जे की हैवानियत ने साफ कर दिया कि बेटी बचाओ एक चेतावनी थी, न कि बेटी बचाओ सरकारी अभियान । कारगिल व श्रीलंका में और शौर्य प्रदर्शन करने वाले सेना के जवान अपनी पत्नी को बचाने में नाकाम रहे ,जब उनकी आंखों के सामने उनकी पत्नी को नंगा करके उसके प्राइवेट पार्ट में अंगुली डालते हुए रोड शो किया गया। इस मंजर को देखकर मानवता शर्मसार हो गई उस पर दोनों महिलाएं कैसे यह सब सहन कर पाईं होंगी जिन्होंने यह तक बताया कि बहसी भीड़ द्वारा आवाज लगाकर यह कहा कि कौन इनके साथ बलात्कार करेगा कुछ जांबाज लोगों ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया। अब देश की बेटी कैसे बचेगी यह यक्ष प्रश्न है। महीनों तक बीरेन सरकार इस घटना से अनजान होने का ढोंग करती रही और 56 इंच का सीना हिंदू सनातन परंपरा को पोषित करके 65 इंच का हो गया। धर्म का लबादा ओढ़े केंद्र की सरकार का नवीन संसद और सेंगौल अनुरूप परिणाम आने शुरू हो गए ,मणिपुर मध्य प्रदेश को प्रथम व दूसरे पुरस्कार हेतु चयनित किया जाना चाहिए क्योंकि एक राज्य मणिपुर ने देश की आबादी के प्राइवेट पार्ट में उंगली डालते हुए नुमाइश लगाकर प्रदर्शन कर दिया तो दूसरे राज्य में आदिवासी के मुंह पर पेशाब करा दी।
संपूर्ण असंवेदनशील हलचलों में जो कि पूर्ण रूप से मानवता के खिलाफ है प्रत्येक दल में उच्च पद आसीन यथा स्थित वादी सवर्ण बिरादरी के लोग कभी ऐसी असंवेदनशील हरकतों पर मुंह नहीं खोलते इन मुद्दों के खिलाफ लिखने में भी उनकी कलम रुक जाती है क्योंकि यह भाजपा और आरएसएस द्वारा प्रशिक्षित हैं । इन्हें हर पार्टी में बने रहकर हिंदू एजेंडा लागू करने हेतु प्रेरित व प्रशिक्षित किया गया है। कांवड़ ,भागवत मंदिर , सनातन तथा आए दिन सोमवार, मंगलवार का जोर शोर से प्रचार करने तथा करवाने हेतु अन्य दलों में भेजा गया है। ताकि भाजपा के एजेंडे को मजबूती से लागू किया जाए और अमानवीय घटना पर बिल्कुल ना बोला जाए किंतु यदि अमानवीय घटना में एक पक्ष मुस्लिम हो तो सोशल मीडिया को भर भर कर मुस्लिम विरोधी मुहिम चलाना इनका काम है । और यह सिद्ध करना की यह हिन्दू विरोधी कृत्य है, अन्य किसी प्रकार की घटना पर सब चुप रहेंगे ।
वर्तमान मणिपुर पर भी गुत्थी बजाय सुलझाने के उलझाने में लगे हैं कि यह मैतय, नागा तथा कुकी जाति का ऐतिहासिक विरोध व संघर्ष है। जिसकी दुहाई देकर उसे जायज ठहराने का प्रयास किया जा रहा है। उन्हें देश के मानवीय मूल्यों तथा मानवीय संवेदना से कुछ नहीं लेना देना है ।
लेखक का मानना है कि भारत को भारत बने रहने के लिए लोगों को एक सार्थक पहल करनी होगी तथा सरकार एवं अन्य दलों में स्थान पाए लोगों के उद्देश्य तथा कार्यप्रणाली पर नजर रखनी होगी और प्रयास करना होगा कि भारतीय संस्कृति तथा मानवीय संवेदनाएं अविच्छिन्न न हों।
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