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Etawah News: चंबल पंजा कुश्ती चैंपियशिप-2 की तैयारियां शुरू, प्रदेशों के खिलाड़ी दिखाएंगें पंजे का कमाल

संवाददाता दिलीप कुमार 

इटावा/चकरनगर : पंजा कुश्ती के खिलाड़ियों के लिए चंबल परिवार एक बार फिर शानदार अवसर लेकर आ रहा है। चंबल घाटी के रणबांकुरे और मद्रास क्रांति के महानायक शंभूनाथ आजाद की याद में ‘चंबल पंजा कुश्ती चैंपियनशिप-2’ की तैयारियां शुरु कर दी गई हैं। चंबल परिवार द्वारा भदावर पीजी कालेज, बाह में रजिस्ट्रेशन और वजन 11 अगस्त को और चैम्पियनशिप 12 अगस्त को होगी। इस चैंपियनशिप में चंबल अंचल के तीनों प्रदेशों के खिलाड़ी पंजे का कमाल दिखाएंगें।

कार्यक्रम संयोजक वरिष्ठ पत्रकार शंकर देव तिवारी ने बताया कि पंजा कुश्ती चैम्पियनशिप का संचालन उत्तर प्रदेश पंजा कुश्ती एसोशियेशन के महासचिव डॉक्टर वीपी सिंह करेंगे। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आयोजन समिति से जुड़े बाह क्रिकेट एसोशिएशन के सचिव सतीश पचौरी और खेल जगत से जुड़े मुकेश शर्मा, प्राचार्य डॉक्टर सुकेश यादव, विनीत तिवारी, नरेंद्र काशीवार, विनोद सांवरिया आदि सहयोग प्रदान करेंगे। 5 अगस्त को आगरा में पंजा कुश्ती एसोसिएशन के कार्यालय पर आयोजन समिति बैठक कर चैंपियनशिप के खाके को अंतिम रूप देगी।

क्रांतिकारी लेखक और चंबल परिवार प्रमुख डॉ. शाह आलम राना ने कहा कि आजादी आंदोलन में चंबल घाटी के रणबांकुरों के अनगिनत रोमांचकारी किस्सों से भरा पड़ा है। ‘नौजवान भारत सभा’ और ‘अनुशीलन समिति’ ने दादा शंभूनाथ को क्रांति का पथिक बना दिया। आजादी मिलने से करीब 17 वर्ष पहले हथियारों के सिलसिले में शंभूनाथ आजाद अपने साथियों के साथ दिल्ली आये। दिल्ली से बुलंदशहर जाने के लिए स्टेशन पर पहुंचे। दिसंबर 1930 में कड़ाके की ठंड थी। सीआईडी-पुलिस द्वारा आजाद और इन्दर सिंह गढ़वाली की जमुना ब्रिज स्टेशन पर तलाशी लेने पर भरा हुआ पिस्तौल जेब से बरामद हुआ। पुलिस की हिरासत में दोनों क्रांतिकारियों को कठोर यंत्रणा देने के बाद आर्म्स एक्ट में तीन वर्ष कारावास की सजा मिली।

लाहौर की बोर्स्टल जेल में शंभूनाथ आजाद गुप्त तरीके से 'सिविल एण्ड मिलिट्री गजट’ पढ़ते थे। एक दिन इस अंग्रेजी दैनिक में मद्रास गवर्नर का भाषण छपा। जिसमें कहा गया था कि मद्रास में न क्रांतिकारी गतिविधियां हैं और न उनके रहते कभी पनप सकती है। यह पढ़कर जेल के सींखचों में कैद क्रांतिकारियों का खून खौल गया और उन्होंने गवर्नर की यह चुनौती स्वीकार करते हुए संकल्प किया कि जेल से छूटते ही मद्रास में ऐसा धमाका होगा कि इंग्लैंड थर्रा जाएगा।

जेल से छूटते ही शंभूनाथ आजाद अपने क्रांतिकारियों साथियों के साथ मद्रास पहुंचे। तय हुआ कि ऊटी बैंक डकैती के बाद मद्रास और बंगाल के गवर्नरों का खात्मा कर दिया जाएगा। गर्वनर का ग्रीष्मकालीन दरबार लगना था जिसमें मद्रास के गर्वनर के अलावा 29 अप्रैल को बंगाल गर्वनर जनरल एंडरसन को सम्मिलित होना था। एंडरसन आयरलैंड से विशेष रुप से भारत में क्रांतिकारी आंदोलन को कुचलने के लिए भेजा गया था।

28 अप्रैल, 1933 को दोपहर 12 बजे शंभूनाथ आजाद ने महज अपने 6 साथियों के साथ जान पर खेलकर ऊटी बैंक से 80 हजार रुपये लूटने में सफल हुए। ऊटी बैंक एक्शन में हिस्सा लेने वाले चार क्रांतिकारियों को दो दिन बाद ही पकड़ लिया गया। लिहाजा चारो तरफ से घिरता देख 1 मई को पार्टी कार्यालय में विस्फोटक सामग्री से बम बना लिया गया। उसी शाम को रायपुरम समुद्र तट पर बम परीक्षण किया गया। एक प्रलयकारी विस्फोट की आवाज और धुएं के बादलों ने चारों तरफ से शहर को ढक लिया। 

क्रांतिकारी जब मकान पर पहुंचे तो पता लगा कि रोशनलाल नहीं आए। बम फेंकते उनका एक हाथ उड़ गया और बुरी तरह झुलसी हालत में उनको पुलिस उठाकर जनरल अस्पताल ले आई। रोशनलाल को उस समय भी होश था पर उन्होंने जुबान नहीं खोली। अस्पताल पहुंचने के लभभग 3 घंटे बाद रोशनलाल शहीद हो गये। बंगाल, पंजाब व दिल्ली की खुफिया पुलिस मद्रास पहुंची। रोशनलाल मेहरा की जानकारी देने वाले को 50 हजार रूपये इनाम के फोटो पोस्टर पूरे शहर में लगा दिये गये।

4 मई, 1933 को पुलिस ने मद्रास शहर के पार्टी कार्यालय को घेर लिया। क्रांतिकारियों की 5 घंटे तक पुलिस से सशस्त्र मुठभेड़ हुई। जिसमें गोविन्दराम बहल शहीद हुए। गोलियां खत्म होने के बाद काफी मश्क्कत के बाद तीनों क्रांतिकारी पकड़ लिए गए। क्रांतिकारियों की पैरवी एस सत्यमूर्ति एडवोकेट ने निःशुल्क की। ऊटी बैंक कांड में 25 साल तथा मद्रास सीटी बम केस में 20 साल के काले पानी की सजा शंभूनाथ आजाद को हुई। दोनों सजाएं साथ-साथ चलने की अपील भी हाईकोर्ट ने खारिज कर दी। क्रांतिकारियों अलग-अलग जेलों में खूब यंत्रणाए दी जाने लगी तो शंभूनाथ आजाद ने मद्रास सेंट्रल जेल में 6 महीने अनशन किया। फिरंगी सरकार ने 1934 में उन्हें नारकीय सेल्यूलर जेल भेज दिया। इस दौरान जेल में कई क्रांतिकारी या तो पागल या शहीद हो गए।

1937 में अंडमान में समस्त चार सौ राजबंदियों ने तीन महीने तक आमरण अनशन किया। इससे पूरे देश में माहौल बना। दबाव में अंडमान सेल्यूलर जेल से विभिन्न प्रांतो के क्रांतिकारियों को 1938 में वापस भेज दिया गया। 1938 में शंभूनाथ आजाद रिहा हुए। शंभूनाथ आजाद ने झांसी में क्रांतिकारी नौजवनों का छापामार दस्ता बनाया और आजादी की निर्णायक लड़ाई की तैयारी के लिए जुट गए। हालांकि उनकी अस्त्र-शस्त्र की बम फैक्टरी पकड़ी गई। 1 सितंबर 1939 को द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ होते ही शंभूनाथ आजाद गैर जमानती गिरफ्तारी वारंट से बच भूमिगत होकर कार्य करते रहे लेकिन जल्द पकड़ में आ गए। आजाद को साढ़े चार वर्ष की सजा हुई। उन्हें 1942 की बरेली की नारकीय जेल के गड्ढा बैरक में बंद कर दिया गया। यहां 1943 में शंभूनाथ आजाद को भूख हड़ताल शुरू करने के एक सप्ताह बाद 20-20 बेंत की सजा देने के साथ ही कलम 59 के तहत सजा बढ़ा दी गई। भूख हड़ताल के दौरान शंभूनाथ आजाद के सभी दांत तोड़ दिये गए।

सन् 1946 में फतेहगढ़ सेंट्रल जेल से रिहा होने पर जेल गेट पर ही नजरबंद कर लिये गये। फिर केंद्र में अंतरिम सरकार बनने पर रिहा हुए। देश की कई कुख्यात जेलों में कठिन जीवन के बीच इतिहास, राजनीति शास्त्र, दर्शन शास्त्र और अंग्रेजी का अध्ययन किया। आजाद भारत में मुफलिसी की हालत में 76 वर्ष की अवस्था में 12 अगस्त 1985 में यह महान क्रांतिकारी रात दस बजे गहरी नींद में सो गये। चंबल परिवार द्वारा चंबल आर्म रेसलिंग चैंपियनशिप के जरिये दादा का स्मरण किया जाता है।

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