Etawah News: डॉ भीमराव अंबेडकर और मान्यवर कांशीराम के मिशन को गति देने को इटावा लोकसभा क्षेत्र से डॉ.धर्मेंद्र लड़ सकते हैं चुनाव
ब्यूरो संवाददाता
इटावा : आगामी 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी हर दल ने शुरू कर दी है लेकिन उन्होंने अपने प्रत्याशियों को हरी झंडी नहीं दी है । किंतु इन सब बातों से हटकर बसपा सुप्रीमो मान्यवर कांशीराम को इटावा संसदीय क्षेत्र से उपचुनाव लड़ने के समय युवा विंग की कमान संभालने वाले उस समय के छात्र नेता रहे डॉ. धर्मेंद्र ने बसपा सुप्रीमो को चुनाव जिताने के लिए अपनी टोली के साथ जसवंत नगर विधानसभा से लेकर इटावा, लखना ,अजीतमल और औरैया विधानसभाओ तक नीली झंडा लगी साइकिलों से गांव गली खेत और खलिहानों तक को दो पैर और दो पहियों से साइकिल यात्रा कर ,उन्होंने अपनी छात्र मंडली के साथ मिलकर तथा सैकड़ो मील चलकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका मान्यवर कांशीराम को जिताने में निभाई थी ।
गुदड़ी के लाल डॉ.धर्मेंद्र कुमार की मारक क्षमता है 'सादा जीवन उच्च विचार'
डॉ.धर्मेंद्र की सामाजिक ,राजनीतिक क्षेत्र में अलग पहचान बन गई थी। उस समय डॉ. धर्मेंद्र मान्यवर कांशीराम के चुनाव इंचार्ज रहे खादिम अब्बास के सानिध्य में आए थे । उस समय खादिम का मान्यवर कांशीराम के चुनाव लड़ने के लिए उन्हें घर-घर तक पहुंचने को भी व्यूह रचना खादिम ने ही करी थी। वैसे भी डॉ. धर्मेंद्र की किसी परिचय के मोहताज नहीं है ।उनका जन्म जसवंत नगर विधानसभा के गांव जगसौरा ग्राम पंचायत के मजरा नगला उदयभान में एक दलित परिवार में हुआ और उन्होंने बाबा साहब डॉ . भीमराव अंबेडकर के तीन सूत्री कार्यक्रम शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो के सूत्र से प्रेरित होते हुए उन्होंने राजनीति विज्ञान विषय में एम .ए., एम. फिल., पी- एचडी. की उपाधि अर्जित कर आला तालीम हासिल की। तत्पश्चात उन्होंने उच्च शिक्षा में लगभग 18 वर्ष का शैक्षिक अनुभव प्राप्त किया तथा आधा दर्जन शोध प्रबंधों पर कुशल निर्देशन प्रदान कर रहे है। एक लंबा शोध व शैक्षिक अनुभव एवम् लेखन का प्रति फल है कि उन्होने अपने तथा अन्य शोध छात्रों के अंतरराष्ट्रीय जर्नल में दर्जनों शोध लेख प्रकाशित कराए है। शोध संबंधी दो पुस्तकों के लेखक होने के साथ कुछ पुस्तके अभी प्रकाशन हेतु प्रतीक्षारत हैं। इसके साथ ही उन्होंने अपने जीवन को दबे कुचले समाज की समस्याओं को दूर करने के लिए खुद को संघर्ष की राह में ढाल लिया। डॉ.धर्मेंद्र साहित्यकार और पत्रकार के साथ उच्च कोटि के कवि भी हैं और वह राष्ट्रीय मंचों से भी काव्य रचना प्रस्तुत कर करके जनता की तालियां बटोरते रहे हैं । सामाजिक कार्यों में उनकी विशेष भूमिका रहती है ।अभी कुछ समय पहले उन्होंने एक गरीब दलित बेटी की शादी स्वयं अपने संसाधनों से संविधान को साक्षी मानकर कराई थी ,इससे डॉ.धर्मेंद्र को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। इस तरह की और भी चार शादियां डॉ.धर्मेंद्र ने स्वयं के खर्चे पर सम्पन्न की हैं। उन्होंने बाबा साहब डॉ.भीमराव अंबेडकर के इस नारे को साकार करने का प्रयास किया और जाति तोड़ो समाज जोड़ो की अलख को परवान चढ़ाते हुए उन्होंने जाने अनजाने में एक ऐसा कारनामा कर दिखाया जो इतिहास के स्वर्ण पन्नों में अंकित हो गया । डॉ.अंबेडकर के विचार को मूर्त रूप देते हुए डॉ. धर्मेंद्र ने अंतर्जातीय विवाह भी संविधान को साक्षी बनाकर सम्पन्न कराया जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामाजिक हस्ताक्षरों ने सराहा। यही कारण रहा कि आज की तारीख में डॉ. धर्मेंद्र को हर पार्टी का नेता, सामाजिक संस्थाओं के पुरोधा उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते और उनके द्वारा किए गए परोपकारी कार्यों की भूरि भूरि प्रशंसा करते है।
डॉ.धर्मेंद्र जैसी बहुमुखी प्रतिभा के लोग कम ही होते हैं वह भी खास तौर से दलित समाज में। इसलिए खादिम लिख रहा है कि डॉ.धर्मेंद्र किसी भी परिचय के मोहताज नहीं है। अभी कुछ माह पहले सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह जी का निधन हो गया था उनके निधन के उपरांत मैनपुरी लोकसभा का उप चुनाव हुआ उसमें सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को चुनाव लड़ाया। बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री मायावती संघ व भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ सपा की उम्मीदवार डिंपल यादव को हराने के लिए दुरभि संधि कर ली। इस दुरभि संधि की पोल उस समय खुल गई की जब मैनपुरी से मायावती ने अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं उतारा और बसपा ने अपने कोऑर्डिनेटरॉ को फरमान जारी कर दिया कि बसपा ने अपना प्रत्याशी इसलिए खड़ा नहीं किया कि सपा को उसकी औकात बतानी है ।जब मायावती की भाजपा से दुरभि संधि की जानकारी डॉ. धर्मेंद्र को हुई और मायावती ने अपनी योजना के तहत जब डिंपल यादव को चुनाव हराने की व्यूह रचना और अपनी ही पार्टी बसपा के जिला अध्यक्ष समेत अन्य पदाधिकारी को बसपा से इसलिए निकाल दिया कि उन्होंने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में जाने अनजाने में सपा मुखिया पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ में फोटो खिंचवा ली थी । मायावती यह फोटो देखकर इतनी भड़क गई कि उन्होंने अपनी पार्टी के पदाधिकारियों के इस कृत्य को अपराध माना और सारे पदाधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया । मायावती के इस कृत्य से साफ जाहिर हो रहा था कि उन्होंने डिंपल यादव को चुनाव हराने और भाजपा के प्रत्याशी को जिताने के लिए कमर कस ली थी। डॉ धर्मेंद्र ने मायावती की इस मंशा को भांप लिया और बिना समय गंवाए मायावती के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया और डिंपल यादव को चुनाव जिताने मैदाने ए जंग में इस आशय से कूद पड़े कि दलित समाज मायावती का बधुआ मजदूर नहीं है कि वह जब चाहे तब उसकी इज्जत आबरू और अस्मिता का सौदा कर ले । मायावती की इस दुरभि संधि को मटियामेंट करने के लिए डॉ. धर्मेंद्र इसी लक्ष्य को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावाती को धूल चटाने और उन्हें बहुजन समाज में बेनकाब करने के लिए मोर्चा खोल दिया । राजनीतिक पंडित गणित लगा रहे थे कि मैनपुरी के उपचुनाव में डिंपल यादव चुनाव हार जाएंगी?उसका कारण साफ था कि जब 2019 में लोकसभा का आम चुनाव हुआ तब सपा और बसपा गठबंधन के उपरांत जिसमें मायावती ने खुद स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव के लिए वोट मांगे थे तब धरतीपुत्र की जीत लगभग 60,000 वोटो से हुई थी। जबकि डिंपल यादव चुनाव में मायावती पूर्ण रूप से भाजपा और संघ की गोद में बैठी हुई थी ऐसे हालात में डिंपल का चुनाव जीतना मुश्किल लग रहा था। इसी अनुमान को लेकर राजनीतिक पंडित डिंपल यादव का की हार का कयास लगा रहे थे । ऐसी विषम परिस्थितियों में दलित समाज का वोट डिंपल के पक्ष में करने की कमान डॉ. धर्मेंद्र ने संभाल ली और जितने भी दलित समाज की प्रमुख हस्तियां थी जिनमें पूर्व आईएएस तथा कमिश्नर रैंक के कई महारथी पीसीएस एवं अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को डॉ.धर्मेंद्र ने डिंपल के चुनाव में यह कर बुला लिया कि हम आप सब मिलकर देश में संविधान और लोकतंत्र बचाने की मुहिम चला रहे हैं लेकिन मायावती जी ने संघ और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से दुरभि संधि कर ली है और मायावती अपनी ही पार्टी के जिला पदाधिकरियों को पार्टी से इस आशय के साथ निकाल दिया कि उन्होंने भूल-चूक से सपा मुखिया पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ फोटो खिंचवा ली थी। डॉक्टर धर्मेंद्र का यह प्रयास काम कर गया और दर्जनों विभिन्न जातियों के छोटे से लेकर बड़े अधिकारी मय अपने निजी संसाधनों के साथ संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए मैनपुरी संसदीय क्षेत्र में अपनी अपनी बिरादरियों में पिल पड़े और डिंपल यादव के लिए खुल्लम खुल्ला वोट मांगने लगे। जिसका नतीजा वोट खुलने के बाद आया कि डिंपल यादव लगभग 2,88,000 वोटो से अप्रत्याशित रूप से चुनाव जीत गई। इस प्रचंड जीत को देखकर सारे राजनीतिक पंडित भौचक्का रह गए। डिंपल यादव की इस अप्रत्याशित जीत का नियोजन डॉ. धर्मेंद्र और शिवपाल सिंह की अपार मेहनत और व्यूह रचना का परिणाम था।
लिखने का तात्पर्य है कि धर्मेंद्र साहित्यकार, पत्रकार ,एक कवि के साथ चुनावी रणभूमि में चुनाव कैसे भावनात्मक बनाया जाए उसके वह कुशल खिलाड़ी हैं ।उन्होंने एक लंबे समय तक डॉ भीमराव अंबेडकर तथा मान्यवर कांशीराम के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए काम किया है । उनका मानना यह भी है कि मायावती जी ने डॉ. अंबेडकर व मान्यवर कांशीराम मिशन को तबाह और बर्बाद करने का काम किया है। आज वह अपनी चमड़ी और दमड़ी बचाने के लिए भाजपा और संघ की गोद में खेल रहीं हैं। ऐसे नेता को कुदरत भी नहीं बख्सती ।मायावती आज सामाजिक राजनीतिक रूप से कंगाल हो चुकीं हैं ।उन्हें अपनी कथनी और करनी पर शर्म आनी चाहिए कि वह उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और आज की तारीख में उनकी पार्टी बसपा का उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक विधायक है जिसका यह भी पता नहीं कि वह इस समय किस दल में है।
डॉ. धर्मेंद्र यह बात सार्वजानिक जरूर रूप से कहते हैं कि मान्यवर कांशीराम ने एक नहीं कई चुनाव हारने के लिए लड़े ,लेकिन इटावा के मिशनरी साथियों ने मान्यवर काशीराम को इटावा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जितवाकर देश के सबसे बड़े लोकतन्त्र के मंदिर में पहुंचाया। काशीराम खुद तो इटावा लोकसभा चुनाव जीते ही उन्होंने जसवंत नगर विधानसभा से बसपा का उम्मीदवार न खड़ा करके मुलायम सिंह के लिए वोट मांगे और वह चुनाव भी जितवा दिया वरना मुलायम सिंह जी की उपरोक्त चुनाव में राजनीतिक लुटिया डूब जाती ।
खादिम यहां इस बात का उल्लेख करता चले कि इसके बाद अकल से पैदल सपाई इस प्रकार का दुष्प्रचार करते रहे कि कांशीराम को मुलायम सिंह जी ने चुनाव जितवा दिया है। जबकि सच्चाई यह है कि जसवंत नगर विधानसभा क्षेत्र में काशीराम को 26,000 के करीब वोट मिले और और मुलायम सिंह यादव को 47,000 वोट मिले। यानी कि कांशीराम और मुलायम सिंह के बीच जीत में वोट का अंतर 21000 रहा , और इसकी सच्चाई की जानकारी सपाई निर्वाचन आयोग के इटावा कार्यालय में जाकर आज भी कर सकते हैं। अगर काशीराम मुलायम सिंह कोअपना वोट ट्रांसफर ना कराते तो कांग्रेस प्रत्याशी बाबू दर्शन सिंह की प्रचंड जीत होती।
कांशीराम को इटावा से चुनाव से मिली थी उन्हें राजनीतिक पहचान
सब जानते हैं कि कांशीराम की जीत में सबसे बड़ा हाथ मुस्लिम मतदाताओं का है जिसने मान्यवर कांशीराम को लोकसभा पहुंचाने के लिए तन मन धन से सहयोग किया। डॉ.धर्मेंद्र अपने मन की बात खुलकर कहते हैं कि जब हमारे मसीहा डॉ.भीमराव अंबेडकर और मान्यवर कांशीराम बहुजन समाज को जगाने के लिए और हारने के लिए कई चुनाव लड़ सकते हैं तब उनका अनुयाई डॉ. धर्मेंद्र चुनाव हारने के लिए क्यों नहीं लड़ सकता? हमने मान्यवर कांशीराम के चुनाव में जो अपने मिशनरी साथियों के साथ कन्हवेशिंग की थी उसे सब लोग जानते हैं । हमने तो पैदल चलकर, साइकिल चलाकर इटावा संसदीय क्षेत्र का चप्पा चप्पा छाना है। हमारी तमन्ना तो सांप्रदायिकता वादी शक्तियों को बेनकाब करना है जो संविधान व लोकतंत्र को समाप्त कर देना चाहते हैं।
डॉ.धर्मेंद्र प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री शिवपाल सिंह यादव की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि उन्होंने हमें अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के अनुसूचित जाति जनजाति प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय महा सचिव बनाकर हमारा सम्मान बढ़ाया इसके लिए हम उनके अहसानमंद हैं । हम तो 2019 का लोकसभा चुनाव भी लड़ना चाहते थे ताकि डॉ. अंबेडकर और मान्यवर कांशीराम के मिशन के साथ डॉ.लोहिया के आदर्श और सिद्धांतों को जन-जन तक पहुंचाजा सके। किन्तु आदरणीय शिवपाल सिंह यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के अनूसूचित जाति/ जनजाति प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व कमिश्नर शंभू दयाल दोहरे को प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया से इटावा का लोकसभा टिकट दिया तो हमने पार्टी हित में अपने कदम पीछे खींच लिए और दोहरे जी के चुनाव में लग गए और शिवपाल सिंह यादव का साथ नहीं छोड़ा । जब शिवपाल सिंह यादव जसवंत नगर विधानसभा का चुनाव लड़े तब सभी साथियों ने मिलकर शिवपाल सिंह यादव को रिकॉर्ड मतों से जिताने के अभियान में लग गया ।
डॉ.धर्मेंद्र कुमार ऐसे प्राणी है जो अपने मन की टीस नहीं छुपाते हैं वह खुलेआम कहते हैं कि जसवंत नगर मतदाता और पार्टी जन चाहते थे कि डॉ. धर्मेंद्र को पार्टी जसवंत नगर से पालिका चैयरमैन का चुनाव लड़ाया जाय। हमें भी पूरा विश्वास था कि सपा हमारी सेवाओं को देखते हुए हमें उम्मीदवार बनाएगी, परंतु ऐसा ना हो सका । क्योंकि सपा के मुखिया अखिलेश यादव जी पढ़े-लिखे सूझबूझ के लोगों की कोई आवश्यकता महसूस नहीं करते हैं ।उन्हें भी गुलाम की सलाम के प्रवृत्ति जैसे लोगों की आवश्यकता है । डॉ धर्मेंद्र कहते हैं कि मैं जीवन भर शिवपाल सिंह यादव का एहसान मंद रहूंगा कि उन्होंने हमें अपनी पार्टी प्रसपा लोहिया में अनुसूचित जाति/ जनजाति प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय महासचिव बनाकर मान सम्मान और गौरव बढ़ाया हमने भी उन्हें निराश नहीं किया और जब सपा के दिग्गज कहे जाने वाले आधारहीन स्वयंभू नेता ने जसवंत नगर से अपना प्रत्याशी सपा से उतारा तब भी हमने उस चेयरमैन प्रत्याशी को जिताने के लिए अपनी पूरीताकत और क्षमता लगाई ।जबकि जसवंत नगर की जनता चाह रही थी कि डॉ. धर्मेंद्र भी चुनावी मैदान में उतरकर अपना फन और हुनर दिखाएं ,लेकिन शिवपाल सिंह के पाले में खड़े होने के कारण हमने ऐसा नहीं किया ।
डॉ.धर्मेंद्र की बात में दम है कि मुसलमान शत प्रतिशत अखिलेश की सपा को वोट दे रहा है। अब इस बात का जवाब तो अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते उन्हें देना ही पड़ेगा । इटावा जनपद में इटावा सहित भरथना, जसवंत नगर में नगरपालिका परिषद हैं तथा इकदिल, बकेवर , लखना में नगर पंचायत इनमें से किसी भी जगह से किसी मुसलमान को चुनाव नहीं लड़ाया गया तथा इटावा नगर पालिका परिषद में प्रसपा लोहिया के शहर अध्यक्ष रहे मोहम्मद इदरीश अंसारी को सपा का टिकट दिया और बिना बताए उनका टिकट भी काट दिया जिससे वह क्षुब्ध होकर और बगावत करके सपा उम्मीदवार के विरुद्ध चुनाव लड़ गए। फल स्वरुप सपा उम्मीदवार को चुनाव जिताने के लिए माननीय शिवपाल सिंह यादव को मुस्लिम समाज के लोगों के घर-घर जाना पड़ा ,तब अखिलेश जी की लाज बची ,नहीं तो पहले बकेवर से सपा ने मुस्लिम को टिकट दिया और उसका भी टिकट काटकर एक यादव प्रत्याशी को अखिलेश के लोगों ने टिकट दे दिया यहां के मुसलमानो ने सपा के विरुद्ध खुली बगावत कर दी और उन्होंने सपा के यादव प्रत्याशी की गजक कूट कर रख दी।
लिखने का आशय यह है कि सपा में ऐसा कौन सा नेता है जो जानबूझकर अखिलेश यादव की मुस्लिम और जाटव समाज में उनकी छवि धूमिल कर रहा है। अखिलेश के नेतृत्व में यह सब कुछ हो रहा है और वह कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं । ऐसी स्थिति में अखिलेश यादव जी मुस्लिम समाज में सपा के लिए वोट मांगने के लिए किस मुंह से जा पाएंगे । अखिलेश जी को याद रखना चाहिए कि उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव ने सांप्रदायिकताबादी भाजपा को परास्त करने के लिए अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया का विलय सपा में कर दिया है ताकि वह खुलकर बैटिंग कर सकें । इसके उपरांत भी अखिलेश यादव जी स्वयं अपने ही पोल में गोल मार रहे हैं। अखिलेश जी की यह बात राजनीतिक पंडितों को समझ में नहीं आ रही है कि आखिरकार वह ऐसा क्यों कर रहे हैं ?उन्हें याद रखना चाहिए कि उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव एक मायने में भोलेनाथ हैं उन्होंने अपने भतीजे अखिलेश को सब कुछ तो अर्पण कर दिया है उसके बाद भी अखिलेश यादव पौरष के हाथी बनकर अपनी फौज को अपने पैरों तले खुद रौंद रहे हैं ।
डॉ. धर्मेंद्र ने अपनी मनसा को स्पष्ट करते हुए कहां कि हमारी रीति नीति हमारे महापुरुष डॉ. अंबेडकर, डॉक्टर लोहिया, मान्यवर कांशीराम की विचारधारा हम जन-जन तक पहुंचाना चाहते हैं इसमें हार जीत का कोई स्थान नहीं है। चुनाव बहुत से लोग लड़ते हैं लेकिन विजय एक ही व्यक्ति को मिलती है हमारा लोकसभा चुनाव लड़ने का मकसद सिर्फ यह है कि एक गरीब भी चुनाव लड़कर अलख जगा सकता है । सर्व विदित है कि बसपा के अलावा अन्य पार्टियां जो सिर्फ़ पैसे को महत्व देती हैं जो गरीबों को टिकट न देकर उनका मजाक बनाती हैं । यह जरूरी है कि संविधान प्रदत्त अधिकार है कि हर गरीब भारतीय मतदाता चुनाव लड़ सकता है। इसलिए संविधान प्रदत्त अधिकार का उपभोग करते हुए 2024 में लोकसभा इटावा से चुनाव लडना अब जरूरी हो गया। क्योंकि हर दल योग्यता को वरीयता न देकर चापलूसी और धन को वरीयता देने में लग गया है। नतीजा निर्वाचित जन प्रतिनिधि सांसद, विधायक बनकर हमारे ही अधिकारों पर डाका डालने लगते हैं , आम जनमानस के हक और अधिकारों की उपेक्षा करते हैं और संविधान की भी सुरक्षा नहीं कर पाते हैं।
खादिम का मानना है की डॉ. धर्मेंद्र की बात में प्रमाणिकता और मौलिकता है इसमें कल्पना की कोई गुंजाइश नहीं है । हम सबको संविधान बचाने के लिए योग्य व्यक्तियों का निर्वाचन करना चाहिए। ताकि देश की महा पंचायत में संविधान अनुकूल आम जनमानस को हक और अधिकार प्राप्त हो सके तथा संविधान सुरक्षित रखा जा सके, नहीं तो यथास्थिति वादी शक्तियां संविधान को समाप्त करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी।
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