संवाददाता: मनोज कुमार
जसवंतनगर (इटावा): यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर में पहला दर्जा प्राप्त 163 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक मैदानी रामलीला मैदान में श्रीराम के द्वारा तीनों लोकों का ज्ञाता रावण का वध कर असत्य पर सत्य की जीत हुई।
जब हो गया था राम और लक्ष्मण का अपहरण
रावण के कहने पर अहिरावण ने युद्ध से पहले युद्ध शिविर में उतरकर राम और लक्ष्मण का अपहरण कर लिया। वह दोनों को पाताल लोक ले गया और एक गुप्त स्थान पर बंधक बनाकर रख लिया। राम और लक्ष्मण के अपहरण से वानर सेना भयभीत व शोकाकुल हो गई, लेकिन विभीषण ने यह भेद हनुमान के समक्ष प्रकट कर दिया कि कौन अपहरण करके ले जा सकता है। तब हनुमानजी वेग की गति से पाताल पुरी पहुंच गए। वहां उन्होंने देखा कि उनके ही रूप जैसा कोई बालक पहरा दे रहा है जिसका नाम मकरध्वज था। मकरध्वज हनुमानजी का ही पुत्र था। जब हनुमानजी लंकादहन कर लौट रहे थे तब समुद्र के किनारे अपनी पूंछ ठंडी कर रहे थे तब उनके पसीने की बूंद गिरी और उस बूंद को मछली ने निगल लिया और वह गर्भवती हो गई। बाद में जब मकरध्वज का जन्म हुआ तो वह अहिरावण को मिला। अहिरावण ने उसे पाला था।
मकरध्वज और हनुमानजी का युद्ध हुआ। मकरध्वज हार गया तब हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और मकरध्वज को पाताल लोक का राजा नियुक्त कर दिया। अंत में हनुमानजी राम और लक्ष्मण दोनों को अपने कंधे पर बिठाकर पुन: युद्ध शिविर में लौट गए और चारों ओर हर्ष व्याप्त हो गया।
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान राम और लंकापति रावध के मध्य भंयकर युद्ध हुआ था। ये युद्ध आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि से आरंभ हुआ था, और दशमी की तिथि पर भगवान राम ने रावण का वध किया था। भगवान राम और रावण के मध्य 8 दिनों तक चला था। दशमी की तिथि पर रावण का वध किया गया था।
कथाओं के अनुसार, रावण सृष्टि का सबसे बड़ा शिव भक्त था। उसने अपने दस सिर काटकर भगवान शिव को अर्पित कर दिए थे, जिससे प्रसन्न शिव ने उसे बहुत से वरदान देकर शक्तिशाली बना दिया। उसे मार सकने वाला केवल एक ही बाण था, जिसे मंदोदरी ने अपने पास छिपा लिया था। जब राम व रावण का युद्ध हुआ तो हनुमान जी ब्राह्मण भिक्षु का वेश रचकर मंदोदरी के पास पहुंच गए और चतुराई से उसे हासिल कर भगवान राम को दे दिया था, जिससे उन्होंने रावण का वध किया था।
अगस्त्य ऋषि से मिला था तरकश
भगवान राम के पास दिव्यास्त्रों के साथ विशेष तरकश भी था। जो कभी खाली नहीं होता था। बाण निकालते ही वह फिर बाणों से भर जाता था। गोस्वामी तुलसीदास ने रामायण में जिक्र है कि यह तरकश उन्हें अगस्त्य ऋषि ने कुछ सिद्धियों के साथ दिया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम के पास कोदंड धनुष भी था, जिस पर बाण चढ़ने के बाद वह लक्ष्य भेदकर ही वापस लौटता था।
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