ब्यूरो संवाददाता
इटावा/सैफई: क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के मरीजों को सर्दी व बदलते मौसम में अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत है। विश्व सीओपीडी दिवस पर उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय सैफई के पल्मोनरी विभाग द्वारा जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया।इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि सैफ़ई विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर डॉक्टर प्रभात कुमार सिंह ने दीप प्रज्वलित कर शुभारंभ किया।
इस मौके पर संबोधित करते हुए कुलपति डॉ प्रभात कुमार सिंह ने कहा है कि क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) यानी कि लंबे समय तक फेफड़ों में समस्या आने से सांस लेने में परेशानी होना। जो विश्व सीओपीडी दिवस नवंबर माह के तीसरे बुधवार को मनाया जाता है। और इस दिन को जागरूकता के रूप में मनाया जाता है। इस बीमारी को पूर्णतया खत्म नहीं किया जा सकता है, परंतु जागरूकता के जरिये व समय पर उक्त परेशानी का पता लगने पर बीमारी का इलाज संभव हो सकता है।सैफ़ई रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर व डीन डॉ आदेश कुमार ने कहा कि पूरे विश्व में बीमारियों से मृत्यु के मामले में सीओपीडी तीसरा प्रमुख कारण है। तथा भारत में दूसरा प्रमुख कारण है,
पूरे विश्व में 10 से 12% जनसंख्या सीओपीडी से ग्रसित है जबकि भारत में 7% जनसंख्या सीओपीडी से ग्रसित है। भारत में हुए शोध से पता चला है कि सीओपीडी के मरीजों की संख्या शहरों में अधिक गांव में कम पाई गई है।यह बीमारी प्रमुखता 40 वर्ष की आयु से ऊपर के लोगों में पाई जाती है,महिलाओं के मुकाबले पुरुषों मैं दोगुना पाई गई है।इस मौके पर सैफ़ई प्रतिकुलपति डॉ रमाकांत यादव, प्रभारी कुल सचिव चंद्रवीर सिंह, डॉ आदित्य गौतम, डॉ आशीष गुप्ता, डॉ प्रशांत यादव सहित मेडिकल छात्र, छात्राएं मौजूद रही।
लक्षण--खांसी आना, बलगम आना,सांस फूलना,इसके अलावा साल में एक से दो सांस के अटैक प्रमुख लक्षण है, जिसके लिए मरीज को अस्पताल में भर्ती भी होना पड़ता है।इस बीमारी के कारक-- यदि किसी मरीज में उपरोक्त लक्षण के अलावा 75 ℅ लोगों में बीड़ी ,सिगरेट पीना प्रमुख कारण है, इसके अतिरिक्त वातावरण में प्रदूषण, फैक्ट्री से निकला हुआ धुंआ तथा गैस, घरों में इस्तेमाल होने वाला लकड़ी का चूल्हा, तथा कुछ जेनेटिक कारक भी सीओपीडी को जिम्मेदार होते हैं।
इस बीमारी की जांच--
1 अच्छे से मरीज की हिस्ट्री लेना जिसमें स्मोकिंग की हिस्ट्री भी शामिल है।
2. छाती का एक्स-रे
3. फेफड़ों की कंप्यूटराइज जांच- जिसे स्पायरोमेट्री कहते हैं।
4. पीक फ्लो स्पायरोमीटर
उपरोक्त के द्वारा जांच कर सीओपीडी की बीमारी को पहचाना जाता है।
बचाव तथा इलाज-
1. स्मोकिंग का त्याग करें
2. वातावरण प्रदूषण से बचें मास्क का इस्तेमाल करें जिसमें सूती कपड़े का मास्क भी हो सकता है।3.धुआं धूल वाली जगह से दूर रहे,
4. अनुलोम विलोम तथा प्राणायाम करें एवं बुजुर्गों को नियमित टहलना भी एक बहुत अच्छा व्यायाम है।
5. क्षमता अनुसार व्यायाम करें एवं अपने दिनचर्या के कार्य हेतु अधिक से अधिक पैदल चले।
6. कार्बोहाइड्रेट तथा फैट डायट कम ले, हाई प्रोटीन डाइट,हाई फाइबर डायट एवं मोटा अंकुरित अनाज ज्यादा ले विटामिन सी विटामिन ए विटामिन ई तथा एंटीऑक्सीडेंट युक्त भोजन ले।
7.फास्ट फूड तथा बाहर के भोजन से बचें।
मेडिसिन में -सीओपीडी की बीमारी में इनहेलर्स दिए जाते हैं, इंफेक्शन होने पर एंटीबायोटिक दी जाती है, और बार-बार सांस के अटैक ना हो इसके लिए वैक्सीनेशन भी इन्फ्लूएंजा वैक्सीनेशन तथा निमोकोकल वैक्सीनेशन भी दिया जाता है, नियमित छाती रोग विशेषज्ञ के निगरानी में इलाज आवश्यक है।
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