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Etawah News : सामाजिक समरसता का सबसे बड़ा वैश्विक ग्रंथ है रामचरित मानस संजय वर्मा (एसएसपी)

 ब्यूरो संवाददाता

इटावा: प्रदर्शनी पंडाल में आयोजित तीन दिवसीय श्रीराम चरित मानस सम्मेलन के द्वितीय दिवस मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए एसएसपी संजय कुमार वर्मा ने कहा कि, राम चरित मानस सामाजिक समरसता का विश्व का सबसे बड़ा ग्रंथ है जिसके व्याख्यान और सिद्धांतों पर यदि हम चलें तो हम अपने समाज और भारत को बेहद मजबूत बना सकते हैं। रामचरित मानस हम सबको आत्मदीपो भवः का बोध कराती है। यह ग्रंथ और इसकी एक एक चौपाई एक भाई, पिता, पुत्र, पति, पत्नी, मित्र, शत्रु और समाज का परस्पर क्या कर्तव्य और दायित्व हैं, इसके लिए प्रेरित करती है। वास्तव में बाबा तुलसी ने यह श्रेष्ठतम ग्रंथ लिखकर पूरी मानवता की भलाई के लिए विश्व के मानस वर्ग को सबसे बड़ा अमूल्य उपहार दिया है।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि केजीएमसी के पल्मोनरी विभागाध्यक्ष डा. सूर्यकांत ने मानस के पात्र सुषैण वैद्य को चिकित्सकों का रोल मॉडल बताते हुए कहा कि, वे ऐसे वैद्य थे जो शत्रु का भी उपचार करते थे और चिकित्सीय अचार संहिता का पालन करते थे। हर चिकित्सक को जीवन में ऐसा ही व्यवहारिक होना चाहिए जो कि सबसे बड़ा मानस धर्म भी है। रामचरित मानस हमे यही अमूल्य शिक्षा देती है।

सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रूप में वृंदावन धाम से पधारे डॉ. विजय कृष्ण चतुर्वेदी ने कहा कि, राम चरित मानस समन्वय और अभेद का ग्रंथ है इसीलिए यह आज घर घर और जन जन के मन में रच बस गया है। राम के जीवन चरित्र का भी यही दर्शन है कि अपने सुख का त्याग करके औरों को सुख देना। अवध के राजकुमार राम ने वनवास भी इसीलिए लिया कि उन्हें वन में जाकर बिना किसी ऊंच नीच और भेद भाव के निषाद, भील, कोल, किरात, शबरी, केवट, जटायु, वानर और भालुओं को अपनाना था। वास्तव में राम दर्शन की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि उन्होंने कभी अपने को ईश्वर रूप में प्रकट नहीं किया। वे सुख में भी असंगता का भाव रखते हैं और वनवास मिलने पर उन्हें कोई दुख नहीं होता।

केवट प्रसंग की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वस्तु से वस्तु का व्यंग्य सौंदर्य किस तरह प्रकट होता है, यह मानस की उस परम रहस्यमय चौपाई से साबित होता है जिसमें बिना पढ़ा लिखा केवट प्रभु राम से कहता है कि "मांगी नाव न केवट आना। कहहु तुम्हार मरम मैं जाना"। इस चौपाई को पढ़ते ही स्वयमेव ही अहिल्या उद्धार की घटना का स्मरण हो आता है। उन्होंने कहा कि ऐसी कोई समस्या नहीं, जिसका समाधान मानस में न हो। मानस का सानिध्य चारो फलों की प्राप्ति भी कराता है, पर जिस पर रामजी की कृपा होती है, वही इस मार्ग पर पांव देता है।

इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ राम दरबार और हनुमान जी  के चित्र पर माल्यार्पण करके हुआ। सम्मेलन के संरक्षक डॉ विश्वपति त्रिवेदी ने संयोजक संजीव कुमार अग्रवाल के साथ सभी अतिथियों का स्वागत और सम्मान किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. कुश चतुर्वेदी ने किया। इस अवसर पर मोना त्रिवेदी, प्रीती त्रिपाठी, डॉ. प्रीती पांडे, आलोक दीक्षित, मेधावसु पाठक, सह संयोजक सुनीता दीक्षित "श्यामा", ओम प्रकाश मिश्रा, देवेंद्र तिवारी, आशुतोष त्रिवेदी, सर्पमित्र डॉ. आशीष त्रिपाठी,शैलेश पाठक उपस्थित रहे।

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