(दूसरों को न्याय दिलाने वाले अधिवक्ताओं के साथ ही न्याय नहीं)
ब्यूरो संवाददाता
इटावा : इटावा कचहरी में यूं तो बहुत सारी सुविधाएं मौजूद है जिनमे गर्मी में पीने के लिए ठंडे पानी की मशीन है चाय नाश्ते की दो केंटीन है साथ ही सस्ती दरों पर अधिवक्ताओं को सामान उपलब्ध कराने के लिए एक अलग केंटीन भी है लेकिन इन सुविधाओं के बीच जो सबसे ज्यादा जरूरी बुनियादी सुविधा होनी चाहिए उससे अधिवक्ता वर्ग वंचित है।
वैसे देखा जाए तो पूरी कचहरी में लगभग 3000 अधिवक्ता हैं। जिनमे से लगभग 40 प्रतिशत अधिवक्तागण वरिष्ठ नागरिक होने के साथ साथ बुजुर्ग है। जिनकी उम्र 55 से 75 वर्ष के आस पास है। लगभग 30 प्रतिशत अधिवक्ता 35 से 55 वर्ष के बीच के हैं और बाकी के 30 प्रतिशत युवा अधिवक्ता है जिनमे महिला पुरुष दोनों ही अधिवक्ता वर्ग शामिल है। अब देखा जाए तो बड़े अधिकारियों या न्यायधीशों के लिए तो साफ सुथरे टॉयलेट उनके कार्यालय के अंदर ही या आस पास बना दिए गए हैं इसी क्रम में कचहरी के बाहर कचहरी में ड्यूटी पर कार्यरत पुलिस कर्मियों के लिए भी एक अलग से साफ सुथरे टॉयलेट की व्यवस्था पुलिस विभाग द्वारा की गई है। लेकिन कचहरी में बैठकर रोज प्रेक्टिस करने वाले घुटने के दर्द से पीड़ित बुजुर्ग या शुगर (डायब्टीज) रोग से पीड़ित कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं के लिए एक भी साफ टॉयलेट की व्यवस्था नहीं है। एक टॉयलेट न्यू अधिवक्ता बिल्डिंग की पश्चिम दिशा में पीछे बना है लेकिन वहां की साफ सफाई की व्यवस्था ही बुरी तरह से चौपट है पेशाब की बुरी बदबू से उस टॉयलेट के आस पास खड़े होना और आस पास के चैम्बर में बैठना भी दुश्वार है।
विडंबना है कि,कचहरी में कई महिला अधिवक्ता भी है लेकिन इसी टॉयलेट के साथ ही बने महिला टॉयलेट में अक्सर ताला ही पड़ा रहता है जो महिलाओं के लिए सफेद हाथी साबित होता है। इस टॉयलेट के बाहर गन्दगी का अंबार है कोई सफाई भी नही होती है। टॉयलेट की नालियां चोक है टॉयलेट के अंदर पान की पीक और चारो तरफ मूत्र ही मूत्र फैला रहता है किसी भी मूत्रजनित संक्रमण फैलने की भी पूरी आशंका भी बनी हुई है। अब ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि बीमार और वरिष्ठ अधिवक्ता आखिर टॉयलेट कहां जाएं जिन्हे शुगर की वजह से बार बार टॉयलेट जाना पड़ता है। अब यदि दुर्भाग्य से कोई अधिवक्ता कभी टॉयलेट में भरे मूत्र पर फिसल कर गिर जाए तो उसे गंभीर चोट भी लग ही सकती है। साथ ही कचहरी में हजारों महिला पुरुष फरियादी भी रोज ही आते ही रहते है ऐसे में यह एक गंभीर समस्या भी है कि आखिर वे भी जाएं तो कहां जाएं उन सभी के लिए भी अलग से किसी अन्य टॉयलेट की व्यवस्था भी कचहरी परिसर में होनी ही चाहिए । कचहरी में मोहन कैंटीन के पीछे एक दक्षिण दिशा में टॉयलेट बना है जो कम प्रयोग होता है। वहीं पश्चिम दिशा में बना यह बदबूदार गंदा टॉयलेट नगर पालिका के स्वच्छता अभियान के लिए एक चुनौती भी बन रहा है । यदि उक्त टॉयलेट की रोज नियमित रूप से साफ सफाई ही संभव हो सके तो शायद कई बुजुर्गों और महिला अधिवक्ता को बड़ी राहत मिल सकती है । लेकिन वर्तमान के ऐसे हालात में कोई भी पुरुष या महिला उस गंदे बदबूदार टॉयलेट को प्रयोग ही नही करना चाहता है। लेकिन अब प्रश्न यह भी है कि, आखिर जाएं तो जाएं कहां ??
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