लेखक : डॉ धर्मेंद्र कुमार प्राचीन काल में पेट भरने के लिए जरूरी था कि खाद्य पदार्थों को कैसे जुटाया जाय जिससे पेट की भूख शांत शरीर को एनर्जी मिल सके। तब प्रकृति में पल रहे जीव जंतु और कृषि ही व्यक्ति का एकमात्र सहारा रही होगी । यह सर्व विदित है उद्योग धंधो से पहले कृषि और कृषि पर निर्भर मानव जाति पशु, पक्षी दीर्घकाल तक कृषि पर निर्भर रहे हैं ।यही शाश्वत है ,और सत्य है तथा वैज्ञानिक भी । इसी कारण प्रत्येक त्यौहार को खुशियां मनाने हेतु फसल का आगमन या फसल बुवाई के समयमनाया गया। त्योहारों का यही वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रतीत होता है । सत्य आधारित मानक से जरा सोचो होली पर गन्ना ,गेहूं की बाली, जौ की बाली का प्रयोग किया जाना, दीपावली के शुभ अवसर पर धान की खील, मिठाई निर्मित खांड का प्रयोग , देवोत्थान पर गन्ना का पूजन जिसमें तिल के लड्डू ,बाजरे की टिकिया , संक्रान्ति पर चावल की खिचड़ी का बनना,लोहड़ी पर मक्का की खील का प्रयोग तथा रक्षाबंधन पर फसल बुवाई के लिए भुजरियां प्रत्येक किसान अपने प्रत्येक खेत की मिट्टी में घर पर छोटे पात्र में बुवाई कर यह चेक करता है कि उक्त खेत में फसल कैसी होगी , अर
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